श्री राम रक्षा स्त्रोत - Shri Ram Raksha Strot

श्री राम रक्षा स्त्रोत के नियमित पाठ करने से सभी प्रकार की बाधाओं एवं समस्याओं से जीवन बचा रहता है. यह हमें आध्यात्मिक एवं मानसिक शक्ति प्रदान करता है. इसका पाठ विशेष रूप से नवरात्रि में करने से बहुत प्रभावशाली होता है. इसे सदैव पूर्ण एकाग्रता एवं भक्ति भाव से पढ़ा जाना चाहिए. इस महान स्त्रोत की रचना ऋषि बुध कौशिक ने की थी. इसका पठन प्रारंभ करने से पहले श्री राम के दिव्य रूप का ध्यान करना चाहिए- धनुष बाण धारण किए लंबी भुजाओं वाले, कमल जिनका आसन है, पीत वस्त्र धारण करने वाले, जिनके नेत्र नव पल्लवित कमल की पंखुड़ियों के समान है, जिनके वाम भाग में सीता माता विराजमान हैं, जिन्होंने विभिन्न प्रकार के सुंदर आभूषण पहने हुए हैं एवं जो लंबे केशों वाले हैं- ऐसे श्री राम को स्मरण कर इस स्त्रोत का वाचन एवं मनन करें.   

भगवान श्री राम का ध्यान 
 ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् । वामांकारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं नानालंकारदीप्तं दधतमुरूजटामण्डलं रामचन्द्रम् ॥ 
स्तोत्रम्
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् । 
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥1॥ 
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् । 
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्॥2॥ 
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्। 
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्॥3॥ 
रामरक्षां पठेत् प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् । 
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥4॥ 
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती । 
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥5॥ 
जिह्वां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवन्दित: । 
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥6॥ 
करौ सीतापति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
 मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥7॥ 
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: । 
ऊरू रघूत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥8॥ 
जानुनी सेतुकृत पातु जंघे दशमुखान्तक: । 
पादौ विभीषणश्रीद: पातु रामोऽखिलं वपु: ॥9॥ 
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठेत् । 
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥10
पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिण: 
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥11॥ 
रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन् । 
नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥ 
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् । 
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धय: ॥13॥ 
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्। 
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥14॥ 
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: । 
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥15॥ 
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् । 
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥16॥ 
तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ । 
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥ 
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ । 
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥ 
शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् । 
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥19॥ आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंगसंगिनौ । 
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥20॥ 
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा । 
गच्छन् मनोरथान् नश्च राम: पातु सलक्ष्मण: ॥21॥ 
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली । 
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघूत्तम: ॥22॥ 
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: 
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेयपराक्रम: ॥23॥ 
इत्येतानि जपन् नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: । 
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशय: ॥24॥ 
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् । 
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरा: ॥25॥ 
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं 
काकुत्स्थं करुणार्णवंगुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् । 
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं 
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥ 26
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे । 
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥27॥ 
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम 
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम 
श्री राम राम रणकर्कश राम राम 
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥ 
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि 
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि । 
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि 
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥ 
माता रामो मत्पिता रामचन्द्र: स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र: 
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥30॥ 
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा । 
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥31॥ 
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् । 
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥ 
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् । 
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥ 
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् । 
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥34॥ 
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् । 
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥35॥ 
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम् । 
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥36॥ 
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे 
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: । 
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं 
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥37॥ 
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । 
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥

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॥इति श्रीरामरक्षा स्तोत्रम्॥
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8 comments:

S.Kumar Swain said...

Jay Sri RAM

Manish Pandey said...

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You have done an excellent job of putting it on the web.

May god bless you.

Thanks a lot,

Unknown said...

You have done a tremendous effort.
Thanks & God bless you

Alex said...

Thank you very much.

Rohit Batra said...

Thanks a lot for taking effort to put Shri Ram Rakhsha Strot on web.

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Unknown said...

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I was not expecting this book on Internet but God Sends his angels everywhere to help people.

Thanks a lot.
May God bless u.

Best regards,
Vishal Gupta
LnT infotech, Banglore.

Unknown said...

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Vishal Gupta
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BIKASH said...

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