काहे विलम्ब करो मेरे भैरव, संकट में घिरो होहु सहाई ।
नहीं जप जोग न ध्यान करों, तुम्हरे पद पंकज में सिरनाई ।
खेलत खाय अचेत फ़िरौ, ममता मद लोभ रहे तन छाई ।
हेरत पंथ रहो निसिबासर, कारन कौन बिलम्ब लगाई ।
जो जब आरत होइ पुकारत, राखि लेहु जम फांस बचाई।
वै भुज काह भये मेरे भैरव, लियो जेहि ते तुम भक्त बचाई ।
औगुन मोर छमा करो भैरव, कृपा दृष्टि डालो मम नाई ।
भटक रह्यो रजनी बिन दीपक, वाट परौ जम त्रास दिखाई ।
काहि पुकार करों एहि औसर, भूल गयो जिय की चतुराई ।
गाढ़ परे सुख देत तुही प्रभु, रोषित देखिकै जात डराई ।
छांडे हैं मात पिता परिवार, पराय गही सरना गति आई ।
जन्म अकारथ जात चलो, भैरव प्रभु तुम बस एक सहाई ।
मंझधार में बेड़ा रहो अटको, भवसागर पार लगाओ गोसांई ।
पूजै कोउ कृत कासी गया महं, कोऊ रहे सुर ध्यान लगाई ।
और अबल के आस छुटे सब, त्रास छुटे हरि भक्ति दृढ़ाई ।
जानत सेस महेस गनेस, सुरेस सदा तोहरे गुन गाई ।
संतन के दु:ख देख सहो नहिं, जान परो बड़ि बार लगाई ।
एक अचम्भो लखों घर में, कछु कौतुक देखि रहो नहिं जाई ।
कहुं ताल मृदंग बजावत गावत, आवत जात महा सुखदाई ।
मूरति एक अनूप सुहावनि, का वरनो वह सुन्दरताई ।
कुंचित केस कपोल विराजत, कौल करी बिच भोंह लुभाई ।
गरजे घोर घमण्ड घटा, बरसै जल अमृत देखि सहाई ।
नभ केतिक दूर बसे चंद-सूरज, सरस्वती रहीं ध्यान लगाई ।
भूषण बहुत विचित्र सोहावन, बैर बिना वर बेनु बजाई ।
घुंघरू सब्द सुने जग मोहित, हीरा जड़े मनि झालरि लाई ।
संतन के दुख देखि सहो नहिं, जान परो बड़िवार लगाई ।
सब संत समाज भजे तुमको, सुरलोक चले प्रभु के गुण गाई ।
केतिक दूर बसे जग में, भैरव के बिना नहिं कोउ सहाई ।
नहिं वेद पढ्यो नहिं ध्यान धर्यो, बन बीच घुमि एकान्तहिं जाई ।
श्री भैरवदेव भज्यौ अभिअन्तर, धन्य गुरू जिन पंथ दिखाई ।
सुकारथ जन्म भये तिन्हके, जिनको तुम नाथ लियो अपनाई ।
का बरनों करनी तोहरी, जल बूड़तहिं प्रभु पार लगाई ।
जाहिं जपै भव फंद कटे, अब पंथ सोइ तुम देहु दिखाई ।
हेर हिये मन में गुनिये, तन छूटि गयो जिय काहे समाई ।
सांस चले पछितात सोइ तन, जात चले अपमान बढ़ाई ।
यह जीवन है थोरे दिन का, का करिहै जम त्रास दिखाई ।
काहे करे कलुषित व्यवहार, काहे छल छिद्र में जन्म गंवाई ।
रे मन चोर तू सांचे कहौ अब, का करिहैं जम त्रास दिखाई ।
जीव दया करू साधु के संगत, प्राप्त अमर पद लोक बड़ाई ।
रहनी रहे औसर जात चले, भजि ले भगवन्त भैरवसांई ।